लोकेश मालवीय विशेष संवाददाता:
जीवन उसी का सफल होता है जो भटकों को सही राह दिखाए । अच्छे बुरे को पहचानते हुए भी मनुष्य अज्ञानता ओर काल के वशीभूत अपने सद्कर्मो को भूल बैठा है । मनुष्य स्वयं अपने जीवन का कल्याण भक्ति और सद्मार्ग के पथ पर चलकर कर सकते हैं। ये विचार हैं 11 साल कि उम्र से श्रीमद्भागवत कथा का गुणगान कर रहे बालव्यास ऋषभ देव जी शास्त्री के ।चोटी सी उम्र में भगवत कृपा प्राप्त कर समाज मे ज्ञान गंगा का प्रचार प्रसार धर्म लाभ पहुँचाने वाले ऋषभ देव मूलतः पिपरिया तहसील के ग्राम सर्रा के सभ्य बेन्देल परिवार से हैं ।बनारस हिन्दू महाविधालय से वैदिक शिक्षा प्राप्त कर ऋषभ देव ने बोलता शब्द से विशेष बातचीत में बतलाया कि गीता के प्रारंभिक 600 श्लोकों का रट्टा लगाकर उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता को अपने अंतर्मन में विराजित किया ।करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान , भगवत कृपा से अपने 8 सालों के सफर में ऋषभ देव ने मध्यप्रदेश,राजस्थान के सैंकड़ो नगरों व ग्रामो समेत देव स्थान नेमिषारण्य ओर अनेकों धार्मिक नगरों में भी धार्मिक जनता के अनुरोध पर अपनी ज्ञान रूपी अमृतवाणी का रसपान श्रद्धलुओं को कराया है ।अपनी कथाओं में गौसेवा परमार्थ सेवा और अंधविश्वास पर समाज मे जागरूकता का सन्देश देने के लिए अपना जीवन परमार्थ के लिए समर्पित कर चुके बाल ब्याश की कथा को सुनने भारी जन सैलाब उमड़ता है ।