होशंगाबाद: परमात्मा ने प्रत्येक मनुष्य का जीवन सुखमय, आनंदमय, शांतिमय व्यतीत हो इसलिए वेद, शास्त्र, उपनिषद्, गीता, रामायण, भागवत् आदि ग्रंथ का निर्माण करवाया, हमारे ऋषि मुनियों व महापुरुषों ने कहा है कि मनुष्य का निर्माण कैसे हो अर्थात् मनुष्य शरीर तो सभी के पास है परंतु मनुष्यता नहीं। वे कहते हैं ‘मनुर्भव:’ मनुष्य बनो। मनुष्यता के गुण, संस्कार, विद्या, सद्ज्ञान, दया, सेवा, सदाचार, न्याय, नीति के अनुसार मनुष्य को जीवन जीना चाहिए तभी उसे मनुष्य कहा जा सकता है। आदमी बड़ा होना चाहता है ये अच्छी बात है लेकिन अच्छा आदमी बनना ये उससे बड़ी बात है। आप बड़े बनो या न बनो लेकिन अच्छे गुणवान, चरित्रवान, दयावान जरूर बनो। शुकदेव मुनि जी ने राजा परिक्षित को श्रीमद्भागवत कथा से यही समझाया था कि जीवन को सही ढंग से जिया जाता है न कि ढोंग से। संसार में प्रत्येक वस्तु का अपना धर्म होता है जैसे पानी का धर्म शीतलता, तृप्ति तथा गीला करना। अगर पानी अपना धर्म छोड़ दें तो उसका अस्तित्व ही क्या होगा। मनुष्य भी जब अपने धर्म, स्वभाव, आचरण व मानवीय गुणों से युक्त रहता है तभी वह मनुष्य कहलाता है यदि मनुष्य मानवीय गुणों को छोड़ देता है तो वह मनुष्य नहीं अपितु पशु ही माना जायेगा अत: ऐसी स्थिति में मानव ही दानव बन जाता है इसलिए वेद, पुराण, शास्त्र, धर्म, सदाचार मानव को महामानव बनाते हैं उक्त विचार आज कंचन नगर में संदलपुर से पधारें संत भक्त पं भगवती प्रसाद तिवारी जी ने प्रथम दिवस की भागवत् कथा में व्यक्त किए।