गौरी पुत्र गणेश जी की एक मनोहारी, बिरली व अद्भुत अति प्राचीन प्रतिमा पिपरिया से 18 कि.मी. पूर्व में बनखेड़ी रोड पर बसे ग्राम बाचावानी के गणेश मंदिर में विराजमान है । ग्रामवासियों के अनुसार यह 800 वर्ष पुराना मंदिर है । इस ऐतिहासिक प्रतिमा की विशेषता यह है कि इसमें एक दन्त गणेश जी की सूंड़ दाहिनी ओर है । एक ही पत्थर पर बनाई गई गणेश प्रतिमा के साथ ही ऋद्धि, सिद्धि, मूषक एवं शुभ लाभ भी बने हुए हैं । यह प्रतिमा दूर-दूर तक सिद्ध प्रतिमा के रूप में विख्यात है जो श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी करती है । पारंपरिक रूप से गणेश चतुर्थी से यहां विशेष पूजा होती है जो अनंत चतुर्दशी तक चलती है । आज गणेश चतुर्थी है ।

V.O.1, मंदिर के पुजारी श्री मनोहर दास बैरागी के अनुसार दाहिनी ओर सूंड़ की प्रतिमाएं बहुत बिरली हैं व चारों धामों में नहीं हैं । हर जगह बायीं ओर सूंड़ वाली प्रतिमायें ही मिलती हैं । परंपरागत रूप से एक ही परिवार के वंशज यहां के पुजारी होते हैं । वर्तमान पुजारी बताते हैं कि वे आठवीं पीढ़ी के हैं । आठ सौ साल पहले ग्राम बाचावानी फतेहपुर रियासत का हिस्सा था जहां राजगौंड़ राजा का शासन था । उस समय यह प्रतिमा यहां खेत में मिली थी । राजा फतेहपुर को यह प्रतिमा पसंद आ गई | उसने इसे हाथी पर रखकर फतेह्पुर ले जाने का प्रयास किया । लेकिन लादने के लिये बिठाया गया हाथी गणेश जी को लेकर खड़ा भी नहीं हो सका था । अंत में हारकर यह माना गया कि श्री गणेश इसी स्थान पर ही बिराजना चाहते हैं । अत: यहीं मंदिर बना दिया गया ।

Bite 1. : मंदिर के पुजारी श्री बैरागी
V.O.2,
तिल गणेश के पर्व पर यहां मेला भरता है, और दूर दूर से लोग यहां आते हैं । यहां समूचे क्षेत्र में व्याप्त है कि यह सिद्ध प्रतिमा है तथा श्रद्धा से पूजा अर्चना करने से मनोकामना पूरी होती है । खास तौर पर पुत्र प्राप्ति के इच्छुक दंपतियों की मनोकामना श्री गणेश पूरी करते हैं । बहुत लोगों ने स्वीकार किया है कि उनकी पुत्र प्राप्ति की कामना पूरी हुई है । ऐसे लोगों ने धन राशि अर्पण कर इस मंदिर का जीर्णोद्धार कर भव्य स्वरूप प्रदान किया है ।

Bite: 2, व्यापारी श्री विनोद जायसवाल.

V.O.3,
बाचावानी ग्राम के लोग मानते हैं कि श्री गणेश जी उनकी प्राकृतिक विपदाओं से रक्षा करते हैं । बाचावानी के खेतों में ओलों से कभी नुकसान नहीं हुआ । यहां ओले गिरते नहीं हैं, और यदि कभी गिरना शुरू हुआ तो मंदिर का घंटा बजाते ही बंद हो जाते हैं । यहां तक कि मौजूदा हालत में जब पानी नहीं गिर रहा था तब मंदिर में आराधना शुरू की गई । आराधना के पांचवें दिन पानी गिरा है ।